प्रकृति और हम : विरोध-आभास ब्रह्मसरोवर कुरुक्षेत्र - एक मनोरम दृश्य ! शाम के समय गया यह यहा चित्र , बेहद सुंदर है - यह देखने वाले के मन पर निर्भर करता है - जिस तरह से प्रकृति ने अपने सौंदर्य को इतने गहरे रंग देकर भी , कुछ भी तो मांग नहीं रही - यही यदि कोई चित्रकार की अभिव्यक्ति होती तो , मनुष्य का अहम साथ जन्म ले चुका होता , यह मेरी चित्रकारी है । इस तरह का अभिमान से कई गुना महान एक चित्रकार या कलाकार में समर्पण का भाव होता है , बस जैसे की प्रकृति सा । जब यह भाव समाप्त हो कर “मैं” का भाव उत्पन्न होता है तो , बहुत कुछ पीछे छूट जाता है । इतने रंग उकेरे हैं- इस प्रकृति नें , वाह ! फिर भी कोई अहम नहीं , कुछ नहीं । मनुष्य के अंदर सब कुछ , मैंने किया , मैंने बनाया। और भी न जाने क्या , क्या ? इस धरा ने बस दिया है , लिया तो कुछ भी , सबसे पहले श्वास , जिस पर सबसे ज्य...
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