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Showing posts from July, 2019

प्रकृति और हम : विरोध-आभास

प्रकृति और हम : विरोध-आभास   ब्रह्मसरोवर कुरुक्षेत्र - एक मनोरम दृश्य ! शाम के समय  गया यह  यहा चित्र  ,  बेहद सुंदर है - यह देखने वाले के मन पर निर्भर करता है - जिस तरह से प्रकृति ने अपने सौंदर्य को  इतने गहरे रंग देकर भी  ,  कुछ भी तो मांग नहीं    रही - यही यदि कोई चित्रकार की अभिव्यक्ति होती तो  ,  मनुष्य का अहम साथ जन्म ले चुका होता  ,  यह मेरी चित्रकारी है । इस तरह का अभिमान से कई गुना महान    एक चित्रकार या कलाकार में समर्पण का भाव होता है  ,  बस जैसे की प्रकृति सा । जब यह भाव समाप्त हो कर “मैं” का भाव उत्पन्न होता है तो  ,  बहुत कुछ पीछे छूट जाता है । इतने रंग उकेरे हैं- इस प्रकृति नें ,  वाह ! फिर भी कोई अहम नहीं  ,  कुछ नहीं । मनुष्य के अंदर सब कुछ  ,  मैंने किया  ,  मैंने बनाया। और भी न जाने क्या  ,  क्या  ?  इस धरा ने बस दिया है  ,  लिया तो कुछ भी  ,  सबसे पहले श्वास  ,  जिस पर सबसे ज्यादा मनुष्य को घमंड है । यह वह श्वास जो प्रकृति ने बड़े प्यार से इस मानव को उपहार स्वरूप दिये । बदले में मनुष्य ने  ,  प्रकृति को सर्वनाश दिया – जो कभी भी वापिस मनुष्य के पास आ सकता है