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My experience is not different from others but I have trained myself in such a way that I know a little about running now There is article published in the New York Times that how to start running , and plz consult your Dr before starting any physical activities. https://www.nytimes.com/guides/well/how-to-start-running
Conquering, the height of the hill fills heart with proud and joy that makes life more meaningful. Beautifully, the Mother Nature is embracing her son with utmost care and love that can also be seen in the motherly look of such a mountainous escarpment. Though , the fortune blesses silently to individual , but , fewer does feel and receive the gift so gracefully.  It is true that achieving a goal, such as conquering the height of a hill, can bring a sense of pride and joy to one's heart, making life feel more meaningful. And when we look at the majestic beauty of the natural world, such as a mountainous escarpment, it is easy to see the care and love that Mother Nature has for her creations. However, it is important to remember that the blessings of fortune are not always distributed equally, and not everyone may have the same opportunities or abilities to achieve their goals. It is important to approach these achievements with humility and grace, and to remember that our accompl
Simon Armitage's Poem - In Praise of Air translated in Hindi - Ravinder Ravi 
Behrouz Boochani: An emerging writer of repute  यह लेख -कुर्दिस्तान के लेखक बहरौच बूचानी जिन्हें "ऑस्ट्रेलियन आत्मकथा पुरस्कार" से सम्मानित किया गया है -आशा है आपको पसंद आएगा - आभार आज ही एक लेख पढ़ रहा था , विषय बेहद रोचक और रोमांचित करने वाला – यूं तो लोग अपना देश छोडकर दूसरे देशों में बसने के लिए जाते रहते हैं । यह बात कुछ अलग इसलिए है क्यूंकी मजबूरियों के चलते अपना देश छोडना बेहद दर्द भरा रहता है। और जहां बात जान की हो यह ओर भी संवेदनशील मामला हो जाता है । “अरब स्प्रिंग” के चलते कितने ही लोगों ने अपने घर और घरवालों को  खोया है , यह बात बहुत लंबी हो जाएगी यदि में इसे “इराक-युद्ध” से भी जोड़ दूँ तो । बहरहाल मैं एक ऐसे व्यक्ति के विषय में बताने जा रहा हूँ जिसे गत सोमवार को ही “ऑस्ट्रेलियन आत्मकथा पुरस्कार” से सम्मानित किया गया है । ये हैं – बहरौज़ बूचानी, ये कुर्दिस्तान से हैं और 2013 में , शरणार्थी के तौर पर ऑस्ट्रेलिया के एक द्वीप पर कुर्दिस्तान से बोट में बैठकर पहुँच गए थे। “नो फ्रेंड बट द माउंटेन्स” इनकी आत्मकथा है – अब इन्हें किस तरह की मजबूरी रही होगी जो ऐसी किताब
            What friendship does stand for in this era of internet?  The ultimate truth of life lies in the social mobility of human being that depends on living organisms in one way or another. Though friendship is worthy for everyone and is also helpful but it loses its strength when one of them starts thinking about self. Here comes breach of trust! Yes this breach of confidence leads to many psychological disorders of physiological structure of brain. That shared ideas, shared secrets and other latent sense of dependability which has been a spinal cord of that friendship, later become the most dangerous and offensive weapon against them. with regards ---

प्रकृति और हम : विरोध-आभास

प्रकृति और हम : विरोध-आभास   ब्रह्मसरोवर कुरुक्षेत्र - एक मनोरम दृश्य ! शाम के समय  गया यह  यहा चित्र  ,  बेहद सुंदर है - यह देखने वाले के मन पर निर्भर करता है - जिस तरह से प्रकृति ने अपने सौंदर्य को  इतने गहरे रंग देकर भी  ,  कुछ भी तो मांग नहीं    रही - यही यदि कोई चित्रकार की अभिव्यक्ति होती तो  ,  मनुष्य का अहम साथ जन्म ले चुका होता  ,  यह मेरी चित्रकारी है । इस तरह का अभिमान से कई गुना महान    एक चित्रकार या कलाकार में समर्पण का भाव होता है  ,  बस जैसे की प्रकृति सा । जब यह भाव समाप्त हो कर “मैं” का भाव उत्पन्न होता है तो  ,  बहुत कुछ पीछे छूट जाता है । इतने रंग उकेरे हैं- इस प्रकृति नें ,  वाह ! फिर भी कोई अहम नहीं  ,  कुछ नहीं । मनुष्य के अंदर सब कुछ  ,  मैंने किया  ,  मैंने बनाया। और भी न जाने क्या  ,  क्या  ?  इस धरा ने बस दिया है  ,  लिया तो कुछ भी  ,  सबसे पहले श्वास  ,  जिस पर सबसे ज्यादा मनुष्य को घमंड है । यह वह श्वास जो प्रकृति ने बड़े प्यार से इस मानव को उपहार स्वरूप दिये । बदले में मनुष्य ने  ,  प्रकृति को सर्वनाश दिया – जो कभी भी वापिस मनुष्य के पास आ सकता है